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Akash Saxena जी ये तर्क सीमित तौर पर सही नहीं है। क्योंकि आप जनसंख्या को रोक नहीं सकते, इसलिए बेहतर उपाय ये होना चाहिए कि नौकरी के विकल्प निकालना चाहिए।
इस प्रकार का तर्क देने वाले नीति निर्माण पैनल का सोच संकीर्ण है विस्तीर्ण नहीं।
जिन क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न हो सकता था उन्हें विकसित नहीं किया अथवा ऐसे क्षेत्र की अवसरों को आजरंदाज करके नष्ट कर दिया।
एक छोटा सा उदाहरण देता हु।
मैं बंगाल के लगभग प्रत्येक सामान्य बाजारों के चौक (ओवर ब्रिज/ बाई पास ) को लेते है, तथा इसकी तुलना उत्तरप्रदेश के सभी सामान्य बाजारों के चौक से करते है।
बंगाल के चौकों में सीसीटीवी, सक्रिय ट्रैफिक लाइट होने के बावजूद वहां 24 घंटे कमसे कम 1 ट्रैफिक/परिवहन पुलिस रहते है,
परन्तु उत्तरप्रदेश के एक सामान्य बाजारों के चौकों में ऐसा नहीं है क्योंकि सरकार हो सकता हो कि इसे नजरअंदाज किया अथवा इस प्रकार की कार्यों को कभी समझा नहीं वरना बहुत रोजगार पैदा होता। और जनता को सुरक्षा अलग से।
इसी प्रकार की नीति की विमुखता के कारण क्या होता है जनता के साथ उसका भी आंकड़ा लीजिए प्रमाण के साथ।
मैंने जो उदाहरण लिया उसके मुताबिक यदि उत्तरप्रदेश में उचित व्यवस्था होता (ट्रैफिक /परिवहन पुलिसों का) तो क्या फर्क पड़ता।
ये रहा तथ्यात्मक आंकड़ा:
| राज्य | 2022 दुर्घटनाएं | 2022 मृतक | 2022 घायल | 2023 दुर्घटनाएं | 2023 मृतक | 2023 घायल | 2024 दुर्घटनाएं | 2024 मृतक | 2024 घायल | स्रोत |
| उत्तर प्रदेश | 41,746 | 22,595 | 28,541 | 44,534 | 23,652 | 31,098 | 46,052 | 24,118 | 34,665 | MoRTH department (2024) |
| पश्चिम बंगाल | 13,686 | 6,002 | 12,843 | 13,795 | 6,027 | 12,615 | उपलब्ध नहीं | उपलब्ध नहीं | उपलब्ध नहीं | MoRTH department (2022) |
ग्राफ:-

अब इसके बाद पुलिसों की संख्या देखिए, इसका भी पब्लिक ITR पर सूचना उपलब्ध है।
| राज्य | वर्ष | लगभग कुल ट्रैफिक पुलिस कर्मी | टिप्पणी |
| उत्तर प्रदेश | 2022 | 3400+ | पूरा वर्कफोर्स, लोअर रैंक भी शामिल हैं |
| उत्तर प्रदेश | 2023 | 3400+ से बढ़ने की उम्मीद | रिक्तियां भरने के बाद बढ़ सकती है |
| पश्चिम बंगाल | 2022 | 5900-6000 के बीच | 51% रिक्तियां, लोअर रैंक शामिल |
| पश्चिम बंगाल | 2023 | 5900-6200 के बीच | कुछ सुधार, भर्ती चल रही है |
Note:- 1. ऊपर दुर्घटनाओं आंकड़ों को देखते समय हमेशा ये ध्यान रखे कि दोनों राज्यों की कुल क्षेत्रफल में बहुत अंतर है। इसलिए जहां बंगाल में 10 में 9 होने पर उत्तर प्रदेश में 10 में 4 की स्थिति बहुत खराब प्रदर्शन करता है।
| राज्य 🗺️ | क्षेत्रफल (km²) | क्षेत्रफल (mile²) | क्षेत्रफल के अनुसार रैंक |
| उत्तर प्रदेश | 240,928 km² | 93,023 mi² | 4th |
| पश्चिम बंगाल | 88,752 km² | 34,267 mi² | 13th |
Note:- 2. ऊपर दुर्घनाओं के आंकड़ों में दोनों राज्यों की जनसंख्याओं में भी अंतर है।
| राज्य 👨👩👧👦 | अनुमानित जनसंख्या 2023 | आधिकारिक जनसंख्या 2011 |
| उत्तर प्रदेश | लगभग 24.14 करोड़ | 19.98 करोड़ |
| पश्चिम बंगाल | लगभग 10.35 करोड़ | 9.13 करोड़ |
अब इन आंकड़ों को देख कर सरासर ये अंदाजा लगा सकते है कि किस प्रकार ट्रैफिक में एक बेहतर रोजगार विकल्प सरकार के पास था। यदि सरकार चाहती तो समय रहते कुछ साल पहले नीतियों को जांच कर सही से लागू करता तो दुर्घटनाओं में कमी होता, लोगो को बेहतर अनुभव और सुरक्षा महसूस होता। यदि सरकार युवाओं को रोजगार विकल्प में भर्तियां करती और राज्य सड़क और सुरक्षा मंत्रालय में सही निवेश और नीति बनाते तो बहुत रोजगार मिलता (हर क्षेत्र में)
ये एक उदाहरण के तौर पर हमने चर्चा की। और बहुत विकल्प और मौके, क्षेत्र है केंद्र और सभी राज्य सरकारों के पास जिससे बढ़ती युवाओं को कभी रोजगारों में कमी महसूस नहीं हो सकता।
अतः सभी आंकड़ों को देखते हुए आप ये अनुमानित कर सकते है कि सरकारों की नीति निर्माण पैनल की किस प्रकार संकीर्ण होता गया। हालांकि इन सभी तथ्यों में राजनीतिक हस्तक्षेपों का प्रभाव अलग अलग रहा तब भी यदि सरकार चाहे तो नागरिकों को सुरक्षा एवं बेहतर रोजगार विकल्प निकाल सकते है।
पर यदि सरकार की दूरगामी दृष्टि एवं सोच न तो उसका सरासर प्रभाव नकारात्मक ढंग से जनता के ऊपर ही पड़ता है।
इसलिए केवल "हुनर न होना" कहकर योग्य युवा को वंचित कर देना, उचित अवसर उत्पन्न न करना , आरक्षण के नाम पर दुष्प्रचार/अ तथ्यात्मक आंकड़े जारी कर भ्रम उत्पन्न करना, एवं विभिन्न प्रकार की विरोधाभास से युवा सोचना बंद नहीं कर सकते।
आप अपना विचार रिप्लाई में दे सकते है 🙏