
संविधान कहता है कि भारत के सभी संसाधनों पर हर नागरिक का अधिकार है। धर्म निरपेक्षता तो केवल शब्द बन कर रह गया है इसलिए इसकी बात नहीं कर रहा हु।
मगर उस कुएं के पानी जितने लोगों तक जा रहा है। हिंदू धार्मिक व्यक्ति द्वारा कैप्चर कर लिया गया ताकि उस मीठे पानी तक अन्य धर्म के लोग पहुंच न सके। अब इसके तर्क में कुछ लोग कहेंगे कि ऐसे मस्जिद मजार भी होंगे जहां मुस्लिम कब्जा कर लिए है। बात सही है। पर मस्जिद मजार से लोगो को कुछ मिल नहीं रहा इसलिए मैं इसे धार्मिक स्थल नहीं मानता। वे मंदिर भी नहीं जहां चमत्कार के नाम पर दूध चढ़ाया जाता हो। अगर असली चमत्कार होता तो दूध चढ़ाना नहीं पड़ता अपने आप निकलता। इस कुएं के मामले में ठीक ऐसा ही है। कुआं अच्छा है, कमसे कम कुछ देता तो है, इसलिए जो मिल रहा है वो सबका होना चाहिए।
एक व्यक्ति ने तय किया कि वो गांव के सभी लोगों को जोड़ कर रखेगा। इसलिए उसने गांव में एक मंदिर बनाया, मंदिर में लोग आते गए, मगर कुछ दिनों के बाद उनसे नोटिस किया कि केवल हिन्दू लोग ही आ रहे है। सो फिर उनसे सोचा कि ऐसे तो नहीं चलेगा। तो उसने मंदिर तोड़वा दिए और उसके जगह पर एक मस्जिद बनवा दिए। फिर वही मामला। कुछ दिनों में पता चलने लगा कि गांव के केवल मुस्लिम ही आ रहे है। तो उन्हें फिर मस्जिद भी तोड़वा दिया और उसके जगह एक चर्च बना दिया, अब तो हिन्दू मुस्लिम सबको आना चाहिए था। पर हुआ ठीक इसका उल्टा। ईसाईयों को छोड़ के कोई नहीं आया। व्यक्ति बड़ा परेशान हुआ। करे तो क्या करे, आखिर उन्हें गांव के सभी लोगों को जोड़ कर रखना था, इस तरह तो सब बटे जा रहे। परेशान एक दिन वह सड़क किनारे बैठा था। तभी एक बच्चा आया कहा कि ताऊ परेशानी की बात की, हमे बताइए, आज हमारे स्कूल में ये पढ़ाया गया कि किस तरह किसी समस्या का हल निकाले, सो आप अपनी परेशानी मुझे कहिए फिर देखिए यूं हल कर देते है। व्यक्ति बोला बेटा तू अभी बच्चा है तू नहीं समझेगा। बच्चा कहा कि ताऊ एक बार कह कर तो देखिए, तो व्यक्ति ने कहा कि मुझे गांव के सभी लोगों को साथ लेकर चलना है। मैने मंदिर बनाया मस्जिद बनाया चर्च बनवाए मगर सब के सब अब भी बटे है समझ नहीं आ रहा क्या करूं।
बच्चा हंस बोला कि इसमें कौन सी कठिन बात है। आप होटल खुलवा दीजिए सब आदमी आयेगा और ऊपर से आपकी कमाई भी हो जाएगा। वह व्यक्ति चौका, कहा बात तो तू सही बोल रहा है, मै समझ गया ये मंदिर मस्जिद चर्च से लोगो को कुछ मिल नहीं रहा, इसलिए लोग बट जा रहा है, मै होटल खुलवाता हु जब सबको कुछ मिलेगा तो वहां सब आएंगे। इस तरह सब साथ मिल कर रहेंगे।
आप देखते होंगे स्टेशनों पर दुकानों पर सड़क आदि सार्वजनिक स्थलों में धर्म के नाम पर लोग बनतीं क्यों नहीं, क्योंकि यही वास्तविकता है। धर्मों ने समाज को चुरन खिलाया है जिसको खाकर अब लोग आपस में लड़े जा रहे।
जैसे हॉस्पिटल में रक्त लेते समय पूछताछ करते की किसका है नाम छोड़ो ये बताओ किस जाति का था, किस धर्म का था वो। जैसे ही पता चलता है कि विपरीत धर्म का था बस,, कोई मरा जा रहा हो मगर भाड़ में जाए जिंदगी, चाहिए तो समान धर्म के लोगों की खून समान जाति के लोगों की खून। इस तरह अब जीवन से ज्यादा महत्व आडंबर बन गया है।